इस आर्टिकल में आप वट सावित्री व्रत कथा PDF की जानकारी प्राप्त करेंगे। वैसे तो सभी ने वट सावित्री व्रत के बारे में सुना ही होगा। यह व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन आता है। यह विवाहित महिलाओं की बीच अत्यधिक प्रचलित है। यहाँ इस आर्टिकल में आपको नीचे Vat Savitri Vrat Katha PDF Download in Hindi का सीधा लिंक प्रदान किया गया है।
सभी विवाहित महिलाएं वट सावित्री व्रत अखण्ड सौभाग्य व परिवार की समृद्धि के लिए रखती हैं। इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष के चारों ओर कच्चे सूत का धागा लपेटते हुए परिक्रमा करती है और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है। जिसके बाद वे वट सावित्री व्रत की कथा सुनती हैं।यदि आप भी वट सावित्री व्रत कथा book download करना चाहते हैं, तो आप नीचे लिंक का प्रयोग कर आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं।
आर्टिकल/पीडीएफ | वट सावित्री व्रत कथा |
लाभ | अखण्ड सौभाग्य व परिवार की समृद्धि |
लाभार्थी | व्रत करने वाली महिलाएं |
उदेश्य | पति की लंबी उम्र और संतान प्राप्ति की कामना करना |
Download Vat Savitri Vrat Katha PDF |
वट सावित्री पूजा विघि
- शिवजी ने देवी पार्वती से कहा है कि सावित्री व्रत के दिन प्रातः स्नान करके सास ससुर का आशीर्वाद लेना चाहिए।
- वट वृक्ष की समीप बैठकर पंचदेवता और विष्णु भगवान का आह्वान करें।
- तीन कुश और तिल लेकर ब्रह्माजी और देवी सावित्री का आह्वान करे ।
- ओम नमो ब्रह्मणा सह सावित्री इहागच्छ इह तिष्ठ सुप्रतिष्ठिता भव।
- इसके बाद जल, अक्षत, सिंदूर, तिल, फूल, माला, नैवेद्य, पान, अर्पित करें।
- एक आम या अन्य फल लेकर उसके ऊपर से वट पर जल अर्पित करें।
- कच्चा सूत लपेटते हुए 7 या 21 बार वट वृक्ष की परिक्रमा करें।
वट सावित्री आरती
अश्वपती पुसता झाला।। नारद सागंताती तयाला।।
अल्पायुषी सत्यवंत।। सावित्री ने कां प्रणीला।।
आणखी वर वरी बाळे।। मनी निश्चय जो केला।।
आरती वडराजा।।1।।
दयावंत यमदूजा। सत्यवंत ही सावित्री।
भावे करीन मी पूजा। आरती वडराजा ।।धृ।।
ज्येष्ठमास त्रयोदशी। करिती पूजन वडाशी ।।
त्रिरात व्रत करूनीया। जिंकी तू सत्यवंताशी।
आरती वडराजा ।।2।।
स्वर्गावारी जाऊनिया। अग्निखांब कचळीला।।
धर्मराजा उचकला। हत्या घालिल जीवाला।
येश्र गे पतिव्रते। पती नेई गे आपुला।।
आरती वडराजा ।।3।।
जाऊनिया यमापाशी। मागतसे आपुला पती। चारी वर देऊनिया।
दयावंता द्यावा पती।आरती वडराजा ।।4।।
पतिव्रते तुझी कीर्ती। ऐकुनि ज्या नारी।।
तुझे व्रत आचरती। तुझी भुवने पावती।।
आरती वडराजा ।।5।।
पतिव्रते तुझी स्तुती। त्रिभुवनी ज्या करिती।। स्वर्गी पुष्पवृष्टी करूनिया।
आणिलासी आपुला पती।। अभय देऊनिया। पतिव्रते तारी त्यासी।।आरती वडराजा ।।6।।
<== वट सावित्री व्रत कथा ==>
पौराणिक एवं प्रचलित वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार राजर्षि अश्वपति की एक ही संतान थीं सावित्री। सावित्री ने वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पति रूप में चुना था। लेकिन जब नारद जी ने उन्हें बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं तो भी सावित्री ने अपना निर्णय नहीं बदला। वह समस्त राजवैभव त्याग कर सत्यवान के साथ उनके परिवार की सेवा करते हुए वन में रहने लगीं।
सत्यवान लकड़ियां काटने जंगल गए। वहां वह मूर्छित होकर गिर पड़े। सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपने गोद में पति का सिर रख उसे लेटा दिया। उसी समय यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। यमराज सत्यवान के जीव को दक्षिण दिशा की ओर लेकर जा रहे हैं। सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल देती हैं।
उन्हें आता देख यमराज ने कहा कि- हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। तुम वापस लौट जाओ। सावित्री ने कहा- जहां मेरे पति रहेंगे वहीं मुझे भी रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है। यमराज के कई बार मना करने पर भी वह नहीं मानीं, अंत में सावित्री के साहस और त्याग से यमराज ने प्रसन्न होकर उनसे तीन वरदान मांगने को कहा।
तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर भी मांगा। तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने कहा- तथास्तु! ऐसा ही होगा। यमराज आगे बढ़ने लगे। सावित्री ने कहा कि है प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गईं जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था। सत्यवान जीवित हो गए।
इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुन: जीवित करवाया बल्कि सास को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए ससुर को उनके ससुर को खोया राज्य फिर दिलवाया। तभी से वट सावित्री व्रत पर वट वृक्ष का पूजन-अर्चन करने का विधान है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से सौभाग्यवती महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती हैं और उनका सौभाग्य अखंड रहता है।
वट सावित्री व्रत की पूजा की सामग्री
- चावल (अक्षत)
- श्रृंगार का सामान
- आम, लीची, मौसमी फल
- मिठाई या घर में पका कोई भी मिष्ठान, बतासा
- मौली
- रोली
- कच्चा धागा
- लाल कपड़ा