आज हम आपके लिए कृष्ण भगवान की आराधना हेतु “आरती कुंजबिहारी की हिंदी pdf” की जानकारी लेके आएं हैं। यह आरती वैसे तो सभी शुभ कार्यो में की जाती है। लेकिन जब कभी भी भगवान श्री कृष्ण से संबंधित कोई पूजा आराधना हो तो इस आरती का महत्व अधिक होता है। इस आर्टिकल से आप कृष्ण आरती गीत आरती कुंजबिहारी की हिंदी पीडीएफ सीधे डाउनलोड लिंक का उपयोग करके डाउनलोड कर सकते हैं।
जैसा की आप सभी ने कृष्ण जन्म की कहानी सुनी ही होगी। की कैसे मथुरा के राजा कंस के अपनी बहन देवकी जिनका विवाह यादव वंश के राजा श्री वासुदेव से हुआ था। उनके विवाह के के दिन हुई आकाशवाणी (कि कंस को देवकी के आठवें पुत्र द्वारा मार दिया जाएगा ) के कारण कंस ने वासुदेव और देवकी को जेल में डाल दिया और उनकी होने वाली सभी संतानो को मारने लगा। कंस के द्वारा उनकी आठवीं संतान तक सभी बच्चों को मरने के बाद श्री कृष्ण का जन्म हुआ। उस दिन कुछ ऐसा चमत्कार हुआ की सभी द्वारपाल वेसुध हो जाते हैं। और श्री वासुदेव कृष्ण जी को कंस से बचाने के लिए उन्हें नंदगाँव में अपने मित्र नंद बाबा और उनकी पत्नी यशोदा के पास छोड़ आते हैं। इस दिन के उपलक्ष में ही कृष्ण जन्माष्टमी मनायी जाती है। आज भी यह त्यौहार बड़े हर्ष और उल्लाश से साथ मनाया जाता है। और भगवान की आरती (Aarti Kunj Bihari Ki Lyrics ) की जाती है।
Aarti Kunj Bihari Ki PDF Highlights
आर्टिकल /पीडीएफ | आरती कुंजबिहारी की हिंदी PDF |
आरती का महत्व | भगवान श्री कृष्ण की आराधना करना |
भाषा | हिंदी |
आरती कब की जाती है | सभी शुभ कार्यों में |
उदेश्य | भगवान से सभी के लिए आशीष प्राप्त करना |
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Aarti Kunj Bihari Ki PDF in Hindi Download
“आरती कुंजबिहारी की” श्री कृष्ण जी की आरती
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
गले में बैजंतीमाला, बजावै मुरली मधुर बाला,
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला,
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली,
लतन में ठाढ़े बनमाली, भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,
चंद्र – सी झलक, ललित छवि स्यामा प्यारी की ||
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
कनकमय मोर- मुकुट बिलसै, देवता दरसनको तरसैं,
गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग, अतुल रति गोप कुमारी की ||
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल- मल- हारिणि श्रीगंगा,
स्मरन ते होत मोह- भंगा, बसी सिव सीस, जटाके बीच,
हरै अघ कीच, चरन छबि श्री बनवारी की ||
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही बृन्दाबन बेनू,
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू, हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद,
कटत भव-फंद, टेर सुनु दीन दुखारी की ||
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
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