कान्हा की नगरी मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है।इस लिए ऐसे एक समय में दुनिया का सबसे बड़ा पर्वत माना जाता था। कहा जाता है कि यह इतना बड़ा था कि सूर्य को भी ढ़क लेता था। इस पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में अपनी उंगली पर उठाकर इंद्र के प्रकोप से ब्रज को लोगों की मदद की थी। Govardhan Parvat Story (Katha) in Hindi PDF पूरी पढ़ने के लिये लेख के साथ बने रहें।
Govardhan Parvat Kahani PDF
Name of PDF | श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत कथा In Hindi |
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श्री कृष्ण को गायों से अत्यंत प्रेम था और वो गायों तथा बछड़ों की सेवा किया करते थे। इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाना और पूजन भी किया जाता है। साथ ही इसके चारों कोनों में करवा की सींकें लगाईं जाती हैं। इसके भीतर कई अन्य आकृतियां भी बनाई जाती हैं और इसकी पूजा की जाती है। इस दिन जो भी गोवर्धन पर्वत की कथा और पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती।
श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत कथा in Hindi
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में एक बार देवराज इंद्र को अपने ऊपर अभिमान हो गया था। इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक अद्भुत लीला रची। श्री कृष्ण में देखा कि एक दिन सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे थे और किसी पूजा की तैयारी में व्यस्त थे। इसे देखते हुए कृष्ण जी ने माता यशोदा से पूछा कि यह किस बात की तैयारी हो रही है?
कृष्ण की बातें सुनकर यशोदा माता ने बताया कि इंद्रदेव की सभी ग्राम वासी पूजा करते हैं जिससे गांव में ठीक से वर्षा होती रहे और कभी भी फसल खराब न हो और अन्न धन बना रहे। उस समय लोग इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए अन्नकूट (अन्नकूट का महत्व)चढ़ाते थे। यशोदा मइया ने कृष्ण जी को यह भी बताया कि इंद्र देव की कृपा से ही अन्न की पैदावार होती है और उनसे गायों को चारा मिलता है।
इस बात पर श्री कृष्ण ने कहा कि फिर इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा होनी चाहिए क्योंकि गायों को चारा वहीं से मिलता है। इंद्रदेव तो कभी प्रसन्न नहीं होते हैं और न ही दर्शन देते हैं। इस बात पर बृज के लोग इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह देखकर इंद्र देव क्रोधित हुए और उन्होंने मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। इंद्रदेव ने इतनी वर्षा की कि उससे बृज वासियों को फसल के साथ काफी नुकसान हो गया।
ब्रजवासियों को परेशानी में देखकर श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी ब्रजवासियों को अपने गाय और बछड़े समेत पर्वत के नीचे शरण लेने के लिए कहा। इस बात पर इंद्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हो गए और उन्होंने वर्षा की गति को और ज्यादा तीव्र कर दिया। तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर विराजमान होकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।
इंद्र लगातार सात दिन तक वर्षा करते रहे तब ब्रह्मा जी ने इंद्र से कहा कि श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हें कृष्ण जी की पूजा की सलाह दी। ब्रह्मा जी की बात सुनकर इंद्र ने श्री कृष्ण से क्षमा मांगी और उनकी पूजा करके अन्नकूट का 56 तरह का भोग लगाया। तभी से गोवर्घन पर्वत पूजा की जाने लगी और श्री कृष्ण को प्रसाद में 56 भोग चढ़ाया जाने लगा।
पुलस्त्य ऋषि श्राप गोवर्धन पर्वत
पौराणिक कथाओं के अनुसार पुलस्त्य ऋषि मथुरा में श्रीकृष्ण लीला से पहले ही गोवर्धन पर्वत को लाए थे। हिंदू मान्यता अनुसार पुलस्त्य ऋषि तीर्थ यात्रा करते हुए गोवर्धन पर्वत के पास पहुंचे तो सुंदरता और वैभव देखकर गदगद हो गए और उसे साथ ले जाने के लिए गोवर्धन के पिता द्रोणांचल पर्वत से निवेदन किया कि मैं काशी में रहता हूं, गोवर्धन को ले जाकर वहां पूजा करूंगा।
पुलस्त्य ऋषि के निवेदन पर द्रोणांचल बेटे के लिए दुखी हुए लेकिन गोवर्धन के मान जाने पर अनुमति दे दी। काशी जाने से पहले गोवर्धन ने पुलस्त्य से आग्रह किया कि वह बहुत विशाल और भारी है, ऐसे में वह उसे काशी कैसे ले जाएंगे तो पुलस्त्य ऋषि ने तेज-बल के जरिए हथेली पर रखकर ले जाने की बात कही। गोवर्धन ने कहा कि वह एक बार हथेली में आने के बाद जहां भी रखा जाएगा, वहीं स्थापित हो जाएगा। आग्रह मानकर पुलस्त्य ऋषि गोवर्धन को हथेली पर रखकर काशी चल पड़े। पुलस्त्य ऋषि मथुरा पहुंचे तो गोवर्धन ने सोचा कि श्रीकृष्ण इसी धरती पर जन्म लेने वाले हैं और गाय चराने वाले हैं। ऐसे में वह उनके पास रहकर मोक्ष पा लेगा। यह सोचकर गोवर्धन ने अपना वजन बढ़ा लिया, जिसे उठाने में पुलस्त्य ऋषि को आराम की जरूरत पड़ गई। उन्होंने गोवर्धन पर्वत वहीं जमीन पर दिया और सो गए।
पुलस्त्य ऋषि जब जगे तो उन्होंने गोवर्धन पर्वत को चलने को कहा, मगर जब गोवर्धन ने अपनी शर्त याद दिलाई तो पुलत्स्य ऋषि नाराज हो गए और उन्होंने गोवर्धन पर छल का आरोप लगाया। गुस्से में पुलस्त्य ने गोवर्धन पर्वत को हर दिन मुट्ठी भर घटने का श्राप दे डाला। पुलस्त्य ने कहा कि तुम्हारी ऊंचाई घटते घटते कलयुग में तुम पूरे के पूरे पृथ्वी में समा जाओगे। कहा जाता है कि पुलत्स्य ऋषि के श्राप के चलते गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई 30 हजार मीटर थी जो करीब 30 मीटर बची है