भगवद् गीता को हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र माना गया है। इसका पाठ करने से मनुष्य के अशांत मन को शांति मिलती है। साथ ही गीता पाठ करने से ज्ञान की प्राप्ति तो होती ही है। इसका पाठ करने के कुछ नियम है। जो आपको नीचे आर्टिकल में प्रदान किये गए हैं। यहां आज हम आपको गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकासित श्रीमद्भगवद्गीता PDF प्रदान करेंगे। भगवत गीता का पाठ करने से मनुष्य को ग्रहों के प्रभाव और उनसे होने वाले नुकसान से बचने और उनका लाभ उठाने में मदद मिलती हैं। यदि आप भी Shrimadbhagavad Geeta PDF By Geeta Press Gorakhpur प्राप्त करना चाहते हैं, तो अमर आर्टिकल के साथ बने रहें।
श्रीमद्भगवद्गीता गीता प्रेस गोरखपुर In Hindi
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा महाभारत युद्ध के आरम्भ से पहले अर्जुन को दिए गए उपदेश को ही श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से जाना जाता है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। भगवद गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। गीता के अठारह अध्यायों में भगवान श्रीकृष्ण ने जो संकेत दिए हैं, उन्हें ज्योतिष के आधार पर विश्लेषित किया गया है। कुछ अध्याय में मनुष्य जीवन में आ रही लगातार विपत्तियों से छुटकारा दिलाते हैं। और कुछ ग्रहों का प्रभाव और उनसे होने वाले नुकसान से बचने और उनका लाभ उठाने के संबंध में बताते हैं। नीचे आर्टिकल में हम आपको सभी 18 अध्याय की जानकारी प्रदान करेंगे साथ ही आपको श्रीमद्भगवद्गीता गीता प्रेस गोरखपुर PDF बिलकुल फ्री में उपलब्ध करेंगे। इसके लिए हमारे साथ अंत तक बने रहें।
लेख | श्रीमद्भगवद्गीता गीता प्रेस गोरखपुर |
प्रकाशन | गीता प्रेस गोरखपुर |
लाभ | मनुष्य जीवन में आने वाले दुखों से मुक्ति |
लाभार्थी | भागवत गीता पाठ करने वाले सभी मनुष्य |
आधिकारिक वेबसाइट | https://www.gitapress.org/ |
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श्रीमद्भगवद्गीता गीता प्रेस गोरखपुर (गीता के 18 अध्याय)
प्रथम अध्याय (अर्जुन विषाद योग)
प्रथम अध्याय का नाम अर्जुनविषादयोग है। इस अध्याय में दोनों सेनाओं का वर्णन व अर्जुन का सेना को देखने के लिए रथ को सेनाओं के मध्य ले जाने और मोहयुक्त होकर कायरता तथा शोक युक्त वचन कहने का वर्णन है।
दूसरा अध्याय (सांख्य योग )
दूसरे अध्याय का नाम सांख्ययोग है। इस अध्याय में कृष्ण अर्जुन को रोता देख कहा की कि इस प्रकार का क्लैव्य और हृदय की क्षुद्र दुर्बलता अर्जुन जैसे वीर के लिए उचित नहीं। साथ श्री कृष्ण इस अध्याय में कर्मयोग और
स्थिर बुद्धि व्यक्ति के गुण के बारे में बताते हैं।
तीसरा अध्याय (कर्म योग )
तीसरे अध्याय कर्मयोग में अर्जुन ने इस विषय में और गहरा उतरने के लिए स्पष्ट प्रश्न किया कि सांख्य और योग इन दोनों मार्गों में आप किसे अच्छा समझते हैं और क्यों नहीं यह निश्चित कहते कि मैं इन दोनों में से किसे अपनाऊँ? इस अध्याय में श्री कृष्ण इस प्रश्न का उत्तर नित्य कर्म करने वाले की श्रेष्ठता, यज्ञादि कर्मों की आवश्यकता, अज्ञानी और ज्ञानी के लक्षण,
और काम के निरोध का विषय की जानकारी देते हुए देते हैं।
चौथा अध्याय (ज्ञान-कर्म-सन्यास-योग)
चौथे अध्याय का नाम ज्ञान-कर्म-सन्यास-योग है, जिसमे श्री कृष्ण ने बताया की जब जब धर्म की ग्लानि होती है तब तब मनुष्यों के बीच भगवान का अवतार होता है,
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
इस अध्याय में कर्म, अकर्म और विकर्म का वर्णन, यज्ञोके स्वरूप और ज्ञानयज्ञ का वर्णन किया गया है।
पांचवा अध्याय (कर्म संन्यास योग )
पांचवें अध्याय का नाम कर्मसंन्यासयोग है। भगवान श्रीकृष्ण इस अध्याय में कर्मयोग और साधु पुरुष का वर्णन करते हैं। तथा बताते हैं कि मैं सृष्टि के हर जीव में समान रूप से रहता हूँ अतः प्राणी को समदर्शी होना चाहिए।
विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।।
शुनि चैव श्वपाके च पंडिता: समदर्शिन:
छठा अध्याय (आत्म संयम योग)
छठें अध्याय का नाम आत्मसंयम योग है जिसका विषय नाम से ही प्रकट है। जितने विषय हैं उन सबसे इंद्रियों का संयम-यही कर्म और ज्ञान का निचोड़ है। सुख में और दुख में मन की समान स्थिति, इसे ही योग कहते हैं।
सातवां अध्याय (ज्ञान विज्ञान योग)
सातवें अध्याय का नाम संज्ञा ज्ञानविज्ञान योग है, इस अध्याय में कृष्ण कहते हैं की पंचतत्व, मन, बुद्धि भी मैं हूँ| मैं ही संसार की उत्पत्ति करता हूँ और विनाश भी मैं ही करता हूँ। मेरे भक्त चाहे जिस प्रकार भजें परन्तु अंततः मुझे ही प्राप्त होते हैं। मैं योगमाया से अप्रकट रहता हूँ और मुर्ख मुझे केवल साधारण मनुष्य ही समझते हैं।
यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्।।
वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन।
भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन।।
आठवां अध्याय (अक्षर ब्रह्म योग )
आठवें अध्याय का नाम संज्ञा अक्षर ब्रह्म योग है। यहां अक्षरविद्या का सार कहा गया है-अक्षर ब्रह्म परमं, अर्थात् परब्रह्म की संज्ञा अक्षर है। मनुष्य, अर्थात् जीव और शरीर की संयुक्त रचना का ही नाम अध्यात्म है। जीवसंयुक्त भौतिक देह की संज्ञा क्षर है और केवल शक्तितत्व की संज्ञा आधिदैवक है। देह के भीतर जीव, ईश्वर तथा भूत ये तीन शक्तियाँ मिलकर जिस प्रकार कार्य करती हैं उसे अधियज्ञ कहते हैं।
नवां अध्याय (राजगुह्य योग)
नवें अध्याय का नाम राजगुह्ययोग है, इस अध्याय में बताया गया है की अध्यात्म विद्या विद्याराज्ञी है और यह गुह्य ज्ञान सबमें श्रेष्ठ है। राजा शब्दका एक अर्थ मन भी था। अतएव मन की दिव्य शक्तिमयों को किस प्रकार ब्रह्ममय बनाया जाय, इसकी युक्ति ही राजविद्या है। इस क्षेत्र में ब्रह्मतत्व का निरूपण ही प्रधान है, उसी से व्यक्त जगत का बारंबार निर्माण होता है।
दसवां अध्याय (विभूति योग)
दसवें अध्याय का विभूतियोग है। इस अध्याय का सार यह है कि लोक में जितने देवता हैं, सब एक ही भगवान, की विभूतियाँ हैं, मनुष्य के समस्त गुण और अवगुण भगवान की शक्ति के ही रूप हैं।
सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्
११ वां अध्याय (विश्वरूप दर्शन योग)
११वें अध्याय का नाम विश्वरूपदर्शन योग है। इसमें अर्जुन ने भगवान का विश्वरूप देखा। विराट रूप का अर्थ है मानवीय धरातल और परिधि के ऊपर जो अनंत विश्व का प्राणवंत रचनाविधान है, उसका साक्षात दर्शन। विष्णु का जो चतुर्भुज रूप है, वह मानवीय धरातल पर सौम्यरूप है।
१२ वां अध्याय
१२ वें अध्याय में श्रीकृष्ण कहते हैं की मुझ में मन को एकाग्र करके निरन्तर मेरे भजन ध्यान में लगे हुए जो भक्त्त जन अतिशय श्रेष्ट श्रद्बा से युक्त्त होकर मुझ सगुण रूप परमेश्वर को भजते हैं, वे मुझको योगियों में अति उत्तम योगी मान्य हैं।
१३वां अध्याय (क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ )
१३वें अध्याय में विषय क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का विचार है। यह शरीर क्षेत्र है, उसका जानने वाला जीवात्मा क्षेत्रज्ञ है। इसकी जानकारी दी गयी है –
१४वां अध्याय (गुणत्रय विभाग योग )
१४वें अध्याय का नाम गुणत्रय विभाग योग है। इसमें समस्त वैदिक, दार्शनिक और पौराणिक तत्वचिंतन का निचोड़ बताया गया है।
१५वां अध्याय (पुरुषोत्तम योग)
१५वें अध्याय का नाम पुरुषोत्तमयोग है। इसमें विश्व का अश्वत्थ के रूप में वर्णन किया गया है। यह अश्वत्थ रूपी संसार महान विस्तारवाला है। देश और काल में इसका कोई अंत नहीं है। किंतु इसका जो मूल या केंद्र है, जिसे ऊर्ध्व कहते हैं, वह ब्रह्म ही है एक ओर वह परम तेज, जो विश्वरूपी अश्वत्थ को जन्म देता है, सूर्य और चंद्र के रूप में प्रकट है,
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रित:
१६वां अध्याय (देवासुर संपत्ति)
१६वें अध्याय में देवासुर संपत्ति का विभाग बताया गया है। आरंभ से ही ऋग्देव में सृष्टि की कल्पना दैवी और आसुरी शक्तियों के रूप में की गई है। यह सृष्टि के द्विविरुद्ध रूप की कल्पना है, एक अच्छा और दूसरा बुरा। एक प्रकाश में, दूसरा अंधकार में। एक अमृत, दूसरा मर्त्य। एक सत्य, दूसरा अनृत।
१७वां अध्याय (श्रद्धात्रय विभाग योग )
१७वें अध्याय की संज्ञा श्रद्धात्रय विभाग योग है। इसका संबंध सत, रज और तम, इन तीन गुणों से ही है, अर्थात् जिसमें जिस गुण का प्रादुर्भाव होता है, उसकी श्रद्धा या जीवन की निष्ठा वैसी ही बन जाती है। यज्ञ, तप, दान, कर्म ये सब तीन प्रकार की श्रद्धा से संचालित होते हैं। यहाँ तक कि आहार भी तीन प्रकार का है। उनके भेद और लक्षण गीता ने यहाँ बताए हैं।
१८वां अध्याय (मोक्षसंन्यास)
१८वें अध्याय का नाम मोक्षसंन्यास योग है। इसमें गीता के समस्त उपदेशों का सार एवं उपसंहार है। यहाँ पुन: बलपूर्वक मानव जीवन के लिए तीन गुणों का महत्व कहा गया है। पृथ्वी के मानवों में और स्वर्ग के देवताओं में कोई भी ऐसा नहीं जो प्रकृति के चलाए हुए इन तीन गुणों से बचा हो। मनुष्य को बहुत देख भागकर चलना आवश्यक है जिससे वह अपनी बुद्धि और वृत्ति को बुराई से बचा सके और क्या कार्य है, क्या अकार्य है, इसको पहचान सके। धर्म और अधर्म को, बंध और मोक्ष को, वृत्ति और निवृत्ति को जो बुद्धि ठीक से पहचनाती है, वही सात्विकी बुद्धि है और वही मानव की सच्ची उपलब्धि है।
श्रीमद्भगवद्गीता गीता प्रेस गोरखपुर Download PDF Hindi
भगवान श्री कृष्ण जी ने जीवन के लिए व्यावहारिक मार्ग का उपदेश देकर अंत में यह कहा है कि मनुष्य को चाहिए कि संसार के सब व्यवहारों का सच्चाई से पालन करते हुए, जो अखंड चैतन्य तत्व है, जिसे ईश्वर कहते हैं, जो प्रत्येक प्राणी के हृद्देश या केंद्र में विराजमान है, उसमें विश्वास रखे, उसका सदैव अनुभव करे। इस प्रकार भगवान कृष्ण द्वारा गीता में कहे 18 अध्याय समाप्त होते हैं। यदि आप भगवत गीता पीडीएफ इन हिंदी डाउनलोड करना चाहते हैं, तो आप नीचे दिए गए सीधे लिंक के माध्यम से पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। यहां हम आपको गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकासित श्रीमद्भगवद्गीता PDF प्रदान कर रहें हैं।